George Soros Net Worth अरबपति की भारत में सरकार बदलने की चाहत
अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के बयान पर हंगामा बरकरार है। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी और भारत में जल्द ही एक लोकतांत्रिक बदलाव की उम्मीद जताई थी। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इस बयान की निंदा की है।
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि मैं पहले भी जॉर्ज सोरोस की ज्यादातर बातों से सहमत नहीं था और आज भी नहीं हूं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तो सोरोस को बूढ़ा, जिद्दी, अमीर और खतरनाक बताया है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जॉर्ज सोरोस की पूरी कहानी जानेंगे। फेक आईडी बनाकर हंगरी से भागने से लेकर 70 हजार करोड़ रुपए कमाने तक; मीडिया हाउस से खुन्नस निकालने से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को हराने की जिद तक…
जॉर्ज सोरोस की वेबसाइट के मुताबिक वो 1930 में हंगरी के बुडापेस्ट में एक यहूदी परिवार में पैदा हुए। जब वो 9 साल के थे, तभी सेकेंड वर्ल्ड वॉर शुरू हो गया। इस वक्त हंगरी में यहूदियों को खोज-खोज कर मारा जा रहा था। सोरोस के परिवार ने इस नरसंहार से बचने के लिए झूठी आईडी बनवा रखी थी।
जब 1945 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर खत्म हुआ तो हंगरी में कम्युनिस्ट सरकार बनी। यही वो समय था जब सोरोस के परिवार ने देश छोड़ने का फैसला किया। 1947 में सोरोस अपने परिवार के साथ बुडापेस्ट से लंदन आ गए।
लंदन पहुंचने के बाद सोरोस के परिवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती खाने और रहने की थी। इस वक्त पैसा कमाने के लिए सोरोस ने कुली और वेटर का काम किए। इसी से वो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई का खर्च निकालते थे।
पढ़ाई पूरी करने के बाद जॉर्ज सोरोस 1956 में लंदन से अमेरिका आ गए। अमेरिका में सोरोस ने फाइनेंस और इन्वेस्टमेंट सेक्टर में काम करने का फैसला किया। यह फैसला उनके लिए सही साबित हुआ।
1973 में ‘सोरोस फंड मैनेजमेंट’ के नाम से कंपनी बनाई। इसके बाद अमेरिकी शेयर मार्केट में पैसा इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया। अगले 6 साल यानी 1979 तक सोरोस इतने सफल बिजनेसमैन बन गए कि वह रंगभेद का सामना कर रहे ब्लैक छात्रों को स्कॉलरशिप देने लगे। इस समय तक वह दुनिया के सबसे बड़े करेंसी ट्रेडर के तौर पर मशहूर हो गए थे।

साल 1992: ‘बैंक ऑफ इंग्लैंड’ की तबाही और जॉर्ज सोरोस की कमाई
साल 1992 की बात है। यूरोपीय देशों ने अपनी करेंसी वैल्यू को स्थिर और मजबूत बनाने के लिए एक्सचेंज रेट मैकेनिज्म शुरू किया था। इसके तहत दो या ज्यादा देश अपने पैसों की वैल्यू को फिक्स कर देते हैं।
1989 से पहले जर्मनी तेजी से डेवलप हो रहा था, लेकिन बर्लिन की दीवार गिरने के साथ ही यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तबाह होने लगा। इसी वक्त यूके ने जर्मनी के साथ एक्सचेंज रेट मैकनिज्म के तहत करेंसी की वैल्यू फिक्स कर दी। जिससे जर्मनी की कमजोर हो रही करेंसी को मजबूती मिले।
जर्मनी की करेंसी मजबूत होना तो दूर, यूके के पाउंड की वैल्यू भी गिरने लगी। यूके सरकार ने इससे बचने के लिए इंट्रेस्ट रेट बढ़ाए। इसके बावजूद जर्मन करेंसी की वैल्यू घटती रही। इसी समय जॉर्ज सोरोस ने यूके की करेंसी पर शॉर्ट पोजिशन ले ली।
16 सितंबर 1992 को जर्मनी के सेंट्रल बैंक ने सहयोगी देशों से अपने करेंसी के वैल्यू को नए सिरे से तय करने की मांग की। इसके बाद यूके ने जर्मनी के साथ हुए एक्सचेंज रेट मैकेनिज्म एग्रीमेंट को तोड़ दिया। इससे दोनों देशों की करेंसी धड़ाम हो गई।
बैंक ऑफ इंग्लैंड तबाह हो गया और इस सबसे सोरोस ने 1 अरब डॉलर से ज्यादा कमाए। इसी तरह मलेशिया और थाईलैंड की करेंसी पर शॉर्ट पोजिशन लेकर सोरोस ने खूब पैसा कमाया।
1995 में जॉर्ज सोरोस को लग गया था कि एशियन कंट्री मलेशिया और थाईलैंड के करेंसी की कीमत जरूरत से ज्यादा है।
इसी वजह से उसने इन दोनों देशों की ढेर सारी करेंसी खरीद ली। 1997 में जब एशियाई देशों में मंदी आई तो मलेशिया की करेंसी में 50% और थाइलैंड की करेंसी में 45% तक गिरावट आई। इससे एक बार फिर सोरोस ने खूब पैसा कमाया।
इस वक्त जॉर्ज सोरोस की नेटवर्थ 71 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा है।

‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ के जरिए 100 देशों तक पहुंच
सोरोस ने 1993 में ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ की शुरुआत की। इसके जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में काम किया और करीब 100 देशों में पहुंच बनाई। उनकी वेबसाइट पर दावा किया गया है कि वह अब तक 32 अरब डॉलर दान कर चुके हैं। वो कई दूसरी इंटरनेशनल संस्थाओं को भी फंड करते हैं।
सोरोस की संस्था ने 1999 में पहली बार भारत में एंट्री की। पहले ये भारत में रिसर्च करने वाले स्टूडेंट को स्कॉलरशिप देती थी। 2014 में ओपन सोसाइटी ने भारत में दवा, न्याय व्यवस्था को बेहतर बनाने और विकलांग लोगों को मदद करने वाली संस्थाओं को आर्थिक सहायता देना शुरू किया। 2016 में भारत सरकार ने देश में इस संस्था के जरिए होने वाली फंडिंग पर रोक लगा दी।
George Soros Net Worth अरबपति की भारत में सरकार बदलने की चाहत
जॉर्ज सोरोस की शख्सियत को समझने के लिए 4 किस्से…
1. जॉर्ज बुश को हराने के लिए खर्च किए 125 करोड़ रुपए
जॉर्ज सोरोस अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी को सबसे ज्यादा चंदा देने वाले लोगों में से एक हैं। 2003 में अपने एक इंटरव्यू में जॉर्ज सोरोस ने अमेरिकी सरकार को गिराने की चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश की सरकार को गिराना उनके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है।
सोरोस ने बुश को हराने के लिए करीब 125 करोड़ रुपए खर्च करने की बात स्वीकार की थी। हालांकि जॉर्ज बुश वो चुनाव जीत गए। इसके बाद बराक ओबामा, हिलेरी क्लिंटन और जो बाइडेन को राष्ट्रपति बनाने के लिए जॉर्ज सोरोस ने खूब पैसा खर्च किया।
हंगरी, टर्की, सर्बिया और म्यांमार में होने वाले सरकार विरोधी लोकतांत्रिक आंदोलनों का सोरोस ने खुलकर समर्थन किया। इन आंदोलनों के सपोर्ट के लिए सोरोस ने फंडिंग भी की।
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2. फॉक्स न्यूज से चिढ़े तो बर्बाद करने लिए लगा दिए 1 मिलियन डॉलर
एक बार फॉक्स न्यूज से जॉर्ज सोरोस काफी ज्यादा चिढ़ गए थे। वह खुलकर इस मीडिया कंपनी से टकरा गए। इसके बाद सोरोस ने 1 मिलियन डॉलर फॉक्स न्यूज को बर्बाद करने के लिए खर्च कर दिए।
ये पैसा जॉर्ज सोरोस ने मीडिया मैटर्स नाम की एक वेबसाइट को दिया था। 2004 में लॉन्च होने के बाद इस वेबसाइट ने फॉक्स न्यूज के खिलाफ एक के बाद एक कई रिपोर्ट पब्लिश की। इस वेबसाइट ने फॉक्स न्यूज को रिपब्लिकन पार्टी का मुखपत्र बताना शुरू कर दिया।
मीडिया मैटर्स ने बाद में बताया था कि फॉक्स न्यूज की फेक रिपोर्ट का खुलासा करके न्यूज कंपनी को जवाबदेह बनाने के लिए ये पैसा खर्च किया गया था।
3. ब्रेक्जिट के खिलाफ अभियान में 4 लाख पाउंड खर्च कर दिए
जॉर्ज सोरोस चाहते थे कि यूनाइटेड किंगडम यूरोपीय यूनियन का ही हिस्सा रहे। इसके लिए उनके कहने पर ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन में रहने के लिए कैंपेन चलाया गया। गार्डियन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि इस कैंपेन पर 4 लाख पाउंड से ज्यादा खर्च हुआ।
ब्रिटेन में सोरोस के पैसे पर इस कैंपेन की अध्यक्षता ब्रिटिश सरकार के पूर्व मंत्री और संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव लॉर्ड मैलोच-ब्राउन कर रहे थे।
4. सोरोस ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप को ‘ठग’ कहा था
2017 में जॉर्ज सोरोस ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को ‘ठग’ कह दिया था। सोरोस ट्रंप से इतना ज्यादा चिढ़ गए थे कि उन्होंने कहा था कि ट्रंप ट्रेड वॉर शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि इससे फाइनेंशियल मार्केट और ज्यादा खराब परफॉर्म करेंगे। देश की इकोनॉमी पर इसका सीधा असर पड़ेगा।
इसी तरह सोरोस चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन की भी जमकर आलोचना कर चुके हैं।
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